Wednesday, December 4, 2013

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जिन्दगी  इस कदर बेखबर हो गई
जो दर्द था सीनेमें, बेदर्द कर गई 
कोन  कहेता  हे की में नशेमे नहीं ?
सांसे  गई मेरी, और में बेखबर था !

न उनकी आँखे नम थी, न मेरी आँखे  ! 
शमाए भी थी रोशन, और पैमाना खाली खम्म था ! 
कोन  कहेता  हे की में नशेमे नहीं ?
वो हूर  हो गई दूर, और में बेखबर था !

बे दर्द था मौसम?, या मौसम में दर्द था ?
हम थे हम-ही , और वो  हे होगए कोई और !
कोन  कहेता  हे की में नशेमे नहीं ?
आइना  रूठ गयाथा मुजसे, और में बेखबर था !

भीड़ में भी तन्हाई का आलम - तस्सवुर  में तबाई  का मंजर था  
चाहत भरे दिलको लिए बेठे हम - उन के हाथ में  खंजर था !
कोन  कहेता  हे की में नशेमे नहीं ?
आँखे जुक रही थी दीदारे यार से पहेले, और में बेखबर था !

मौत  मांगने गए दर पे खुदाके - वहा भी उसका सूरूर था
बेरहम बन गया खुदा, कबूल कर उनकी दुवा !
कोन  कहेता  हे की में नशेमे नहीं ?

फिर वही लौ रोशन थी जिंदगी की, और में बेखबर था !


Written by me on 6 June 2009, 09:55:00 PM

5 comments:

praful said...

superb...

News said...

keep it up.......

Bed Badshah said...

wah wah
Very nice

Rajiv Trivedi said...

good

Rajiv Trivedi said...

good

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