Tuesday, February 15, 2011
हा तुम हो
आंखे खुली तो तुम हो , आंखे बंध की तो तुम हो खुली
दूर भी तूम हो, पास भी तुम हो
जिन्दगी से मौत तक, सांसो की हर मोज में तुम हो |
हा तुम हो . . .
सुबह में सूरज बनकर, निशा में चाँद बनकर,
शर्दी में ठंड बनकर, गर्मी में धुप बनकर,
बारीस में बूंद बनकर तुम हो |
हा तुम हो . . .
पूछ रही हो तूम मुझे की ,
मेरे जीवनमे तुम क्या हो . . .?
नहीं हे मेरे पास कोई उत्तर -
मेरे प्रश्नमे ही तुम हो |
हा तुम हो . . .
नहीं हे पता मुझे की, मेरी तुम क्या हो
मगर तुम हो . . . .
दिलका दर्द, होठो की मुस्कान ,
आंख के आंशु, लबो के अल्फाज में तुम हो |
हा तुम हो . . .
ब्या कर रहा हु में तुम्हे शेरो सायरी में
उन के हर शब्द की गूंज में तुम हो
हा तुम हो . . .
मिलन के बाद जुदाई में,
भिडके बाद तन्हाई में ,
जिन्दगी के बाद मौत में तुम हो
हा तुम हो . . .
मेरे मन में नहीं , तन में नहीं ,
जहा में नहीं, जिगर में नहीं ,
मेरी सासों में नहीं , आँखों में नहीं,
साहिल में नहीं , मंजिल में नहीं ,
हा "बिपिनकी" आत्मा में तुम हो
हा तुम हो . . .
Labels:
Hindi
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment