Monday, November 29, 2010

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इन आँखोंने शैलाब देखे हे |
काँटों से भरे गुलाब देखे हे |
दर्द से कभी छुटा ही नहीं दामन
हमने आसू भरे आश्मान देखे हे |
अपनेपनकी बाते न करो हमशे |
हमने खोखले रिश्ते हजार देखे हे |
सपनो के शीशमहल बनाये थे जिनके साथ
उन्ही के हाथोमे पत्थर देखे हे आज |
जिंदगी के दोराहे पे खड़ाहू में तन्हा
मागु तो भी क्या मागु खुदासे आज |
क्योंकि खुदाभी पूछता हे, क्या दू तुम्हे ?
जिनकी दूवा कबुल करनेकी दुवा मांगतेहो बिपिन
वही दूवा में तेरी मोत मांगते हे आज |


2 comments:

Unknown said...

nice.........

Anonymous said...

Lovely truely..!

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